म्यूचुअल फंड्स के प्रकार: भारतीय निवेशकों के लिए गाइड

क्या आपको पता है भारत का म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री लगभग ₹ 60 लाख करोड़ रूपये का हो गया गया है । अगर पीछे  कुछ सालो का इतिहास देखे तो नवंबर 2020 में यह इन्डस्ट्री पहली बार ₹30 लाख करोड़ को पार किया था । मतलब मात्र चार सालो में यह उधाेग दुगुना हो गया पर अगर उससे भी छह साल पीछे जाते है तो भारतीय एमएफ उद्योग का समग्र आकार 31 मई 2014 को ₹ 10.11लाख करोड़ था जो बढ़कर 31 मई 2024 तक ₹ 58.91 लाख करोड़ हो गया है। मतलब  10 वर्षों कीअवधि में लगभग 6 गुना वृद्धि है। यह तेज बढ़त जहां आम निवेशको को म्यूचुअल फंड के प्रति आर्कर्षित कर रहा है दूसरी ओर जानकार इस बढ़त के प्रति आशंकित भी है ।

दूसरी ओर आम लोगो की भागरीदारी की जहां तक बात करे तो करीब 7 प्रतिशत से कम लोग ही  म्यूचुअल फंड में निवेश करते है । यह प्रतिशत और भी कम है क्याकि बडी संख्या में एनआरआई  भी भारतीय म्यूचुअल फंड में निवेश करते है। वर्तमान में लगभग 8.76 करोड़  एसआईपी खाते है । वही अगर बिकसित देश अमेरिका देखे तो यहां 50 से अधिक प्रतिशत जनता म्यूचुअल फंड में निवेश करती है ।

म्यूचुअल फंड में निवेश की साईज देखे तो बहुत बड़ी राशि यहां जमा होती है परन्तु अगर लोगो की भागीदारी की बात करे तो काफी कम है अगर इसमें भी राज्यवार चर्चा करे तो भारत के 70 प्रतिशत निवेश केवल पांच राज्यो से आते है। आइसीआरए के अध्यययन के अनुसार महराष्ट्र कर्नाटक गुजरात पश्चिम बंगाल और नई दिल्ली इन पांच राज्यो का म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री में योगदान 68.46 प्रतिशत का है । इन आकड़ो के आधार पर कहा जा सकता है कि भारत का म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री अभी भी भारत में एक अभिजात बर्ग के निवेश का साधन ही है आम लोगो की भागीदारी न के बराबर है । जहां तक कारण की बात है तो आम निवेशक में जोखिम लेने की क्षमता का अभाव प्रमुख कारणो में एक माना जाता है परन्तु इससे भी ज्यादा महत्बपुर्ण कारण मुझे लगता है लोगो को इस इंडस्ट्री की जटीलता का समझ में न आना । क्याकि एसआईपी के माध्यम से केवल 500 रूपये के महिना से निवेश किया जा सकता है और पांच सौ रूपया महिना पर जाखिम लेने की क्षमता कम से कम 50 प्रतिशत भारतीय की होगी ही फिर भी इस माध्यम से निवेश नही करते है । अब्बल तो यह कि जयादातर लोगो को पता है ही नही कि म्यूचुअल फंड आखीर काम कैसे करता है और इसमें आपका निवेश कैसे काम करता है क्याकि बिना समझे कोई चाहे 5 लाख हो 500 रूपया निवेश नही करेगा । इसलिए जरूरी है म्यूचुअल फंड कैसे काम करता है इसके क्या लाभ हानी है यह काम कैसे करता है किसको इससे जुड़ना चाहिए किनको बचना चाहिए ऐसे तमाम सबाल का उत्तर दिया जा सके । इस लेख में म्यूचुअल फंड क्या है और कैसे काम करता है। इस बिषय पर केन्द्रीत रहेगे म्यूचुअल फंड के प्रकार का संक्षिप्त परिचय दिया जायेगे जिसे बिस्तार से आगे के आलेखो में प्रस्तुत किया जायेगा ।

1. म्यूचुअल फंड क्या है?

म्यूचुअल फंड एक निवेश साधन है, जिसमें  निवेशकों का पैसा इकट्ठा करके विशेषज्ञो द्धारा शेयर, बॉन्ड, या अथवा अन्य परिसंपत्तियों में निवेश किया जाता है। लोगो से जमा फंड का प्रबंधन  पेशेवर फंड मैनेजर द्वारा किया जाता है। म्यूचुअल फंड्स की मूल बिशेषता यह है कि इसके अनेको प्रकार निवेशकों को विविधता प्रदान करती है जिसके कारण निवेशक अपने जरूरत के अनुसार बिकल्प उपलब्ध होते है जिसका सीघा संबंध जाेखिम और रिर्टन से है । म्यूचुअल फंड में अगर आप अधिक जोखिम उठाने को तैयार है तो आपको अधिक रिर्टन मिल सकती है और अगर आप जोखिम उठने की स्थिति में नही है तो आपका रिर्टन भी कम ही होगा । म्यूचुअल फंड की विविधता ही इसे एक यूनिक प्रोडक्ट बनाता है ।

म्यूचुअल फंड एक वित्तीय साधन है जो निवेशकों के समूह से पूंजी एकत्र करता है और उसे पेशेवर रूप से प्रबंधित पोर्टफोलियो में निवेश करता है। यह पोर्टफोलियो शेयरों (Equities), बॉन्ड्स (Debts), और अन्य प्रतिभूतियों का मिश्रण हो सकता है। म्यूचुअल फंड्स निवेशकों को विविधीकरण, पेशेवर प्रबंधन, और विभिन्न परिसंपत्तियों में आसान निवेश का मौका प्रदान करते हैं।म्यूचुअल फंड्स निवेशकों के हितो की रक्षा करने के लिए Security And Exchange Board Of India (SEBI) रेगुलेटरी अथरटी है इसी की देख रेख में भारत में म्यूचुअल फंड का पुरा कारोबार होता है।

2.म्यूचुअल फंड कैसे काम करता है ?

  1. निधीयो का एकत्रीकरण (Pooling of Funds):
    • सबसे पहला काम होता म्यूचुअल फंड कई निवेशकों से धन एकत्र करता है। जिसकी शुरूआत NFO के माध्यम से होता है ।NFO का मतलब है न्यू फंड आंफर के माध्यम से फंड जुटायेगी । इसमें प्रत्येक यूनिट की दर 10 रूपया होता है ।इसे उदहारण से समझे मान लो एक AMC एक फंड आफर ले के आती है जिसमें निवेश करने के लिए लोगो से आग्रह किया जाता है । अब कई लोग इसमें अपना निवेश करेगे कोइ 500 रूपया भी निवेश करेगा को 10 या 20 हजार भी करेगा । फिर मान के चलते है कि सारा रूपया जमा होने के बाद 1 लाख रूपया हुआ तो 10 रूपया प्रति यूनिट के अनुसार सभी को उसके निवेश के अनुपात में यूनिट मिल जायेगी ।प्रत्येक निवेशक अपने योगदान के अनुपात में फंड का मालिक होता है।इसके बाद उस पैसा को मार्केट में लगेगा । अगर एक लाख रूपया एक लाख हजार रूपया हो जाता है तो यूनिट की दर 11 रूपया हो जायेगी अब अगर कोइ निवेशक पैसा लगाना चाहेगा तो उसे 11 रूपया प्रति यूनिट के अनुसार उस फंड में हिस्सेदारी मिलेगी । इस तरह से फंड की यात्रा शुरू होती है आज की तारीख में जिस फंड की किमत दो हजार तीन हजार देखते है शुरूआत में यह 10 रूपया में ही मिला था ।
    • सेबी के गाईडलाइन के अनुसार किसी भी फंड हाउस जिसे AMC कहा जाता है जिसका अर्थ एसेट मैनेजमेंट कम्पनी होता है बह पुर्व में ही निवेशक को इसके जोखिम और संभाबनाओ के प्रति अगाह करना होता है । लार्ज कैप मिड कैप और स्माल कैप में जाेखिम का स्तर अलग अलग होता है तो निवेशक को पहले ही बताया जाता हैकि इस तरह के निवेश को किस तरह का खतरा है और इस फंड में क्या संभावना है ।
  1. पोर्टफोलियो निर्माण (Portfolio Construction):
    • एक पेशेवर फंड मैनेजर म्यूचुअल फंड का प्रबंधन करता है। मतलब हम अपने पैसे का प्रबंधन बिशेषज्ञ लोगो की टीम को देते है जो इसमें महारत हसिल किये हुए है।
    • फंड मैनेजर निवेश रणनीतियों को तैयार करता है और पूंजी को विभिन्न परिसंपत्तियों में निवेश करता है, जैसे कि शेयर, बॉन्ड, आदि। फंड मैनेजर का कार्य आपके निवेश पर अधिकतम रिटर्न और जोखिम को न्यूनतम रखने का होता है पर यह सब बाजार पर निर्भर करता है।

2. म्यूचुअल फंड्स के प्रकार

i. इक्विटी म्यूचुअल फंड्स

इक्विटी म्यूचुअल फंड्स का मुख्य उद्देश्य पूंजी की वृद्धि है। ये फंड्स अधिकांशतः शेयर बाजार में निवेश करते हैं और उच्च रिटर्न की उम्मीद रखते हैं, लेकिन इनमें जोखिम भी अधिक होता है।

  • लार्ज कैप फंड्स: बड़े और स्थिर कंपनियों में निवेश करते हैं।
  • मिड कैप फंड्स: मध्यम आकार की कंपनियों में निवेश करते हैं।
  • स्मॉल कैप फंड्स: छोटे और उभरते हुए व्यवसायों में निवेश करते हैं।

ii. डेट म्यूचुअल फंड्स

डेट म्यूचुअल फंड्स मुख्य रूप से फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज जैसे बॉन्ड्स, सरकारी सिक्योरिटीज और कमर्शियल पेपर में निवेश करते हैं। ये फंड्स कम जोखिम और स्थिर रिटर्न प्रदान करते हैं।

  • शॉर्ट टर्म डेट फंड्स: छोटी अवधि के निवेश के लिए।
  • लॉन्ग टर्म डेट फंड्स: लंबी अवधि के निवेश के लिए।

iii. हाइब्रिड म्यूचुअल फंड्स

हाइब्रिड म्यूचुअल फंड्स में इक्विटी और डेट दोनों का मिश्रण होता है, जो निवेशकों को संतुलित रिटर्न और मध्यम जोखिम प्रदान करता है।

  • बैलेंस्ड फंड्स: इक्विटी और डेट में लगभग समान निवेश।
  • एग्रेसिव हाइब्रिड फंड्स: इक्विटी में अधिक निवेश और डेट में कम।

iv. मनी मार्केट फंड्स

ये फंड्स अल्पकालिक निवेशों में निवेश करते हैं, जैसे कि ट्रेजरी बिल्स और अन्य नकदी-प्रबंधन साधन। ये बहुत कम जोखिम वाले होते हैं और अक्सर तरलता के लिए चुने जाते हैं।

v. इंडेक्स फंड्स

इंडेक्स फंड्स किसी विशेष सूचकांक, जैसे कि निफ्टी 50 या सेंसेक्स, का अनुकरण करते हैं। इनका लक्ष्य उस इंडेक्स के समान प्रदर्शन देना होता है।

vi. ईएलएसएस (Equity Linked Savings Scheme)

ईएलएसएस इक्विटी म्यूचुअल फंड्स हैं जो कर बचत के साथ-साथ पूंजी वृद्धि का अवसर प्रदान करते हैं। इनका लॉक-इन पीरियड 3 साल का होता है।

3.म्यूचुअल फंड्स के फायदे और नुकसान

  1. विविधता (Diversification):
    • म्यूचुअल फंड्स विभिन्न परिसंपत्तियों में निवेश करते हैं, जिससे जोखिम को कम किया जा सकता है।
    • यह विविधता व्यक्तिगत निवेशक के लिए संभव नहीं हो सकती है, खासकर छोटी पूंजी के साथ।
  2. पेशेवर प्रबंधन (Professional Management):
    • फंड मैनेजर्स के पास निवेश के क्षेत्र में गहरी जानकारी और अनुभव होता है।
    • वे बाजार के अवसरों की पहचान करने और निवेश रणनीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने में कुशल होते हैं।
  3. सुविधा और लचीलापन (Convenience and Flexibility):
    • म्यूचुअल फंड्स में निवेश और रिडेम्पशन की प्रक्रिया सरल होती है।
    • निवेशक नियमित निवेश योजनाओं (SIP) के माध्यम से छोटे-छोटे निवेश कर सकते हैं।
  4. कम निवेश राशि (Low Minimum Investment):
    • म्यूचुअल फंड्स छोटे निवेश से भी शुरू किए जा सकते हैं, जिससे वे सभी प्रकार के निवेशकों के लिए सुलभ होते हैं।
  5. लिक्विडिटी (Liquidity):
    • ओपन-एंडेड म्यूचुअल फंड्स में निवेशक अपनी यूनिट्स को जब भी चाहें, मौजूदा NAV पर बेच सकते हैं।
    • यह निवेशकों को उनके निवेश को नकदी में बदलने की सुविधा देता है।

नुकसान:

  • प्रबंधन शुल्क: फंड प्रबंधक के लिए भुगतान किया जाने वाला शुल्क।
  • बाजार जोखिम: बाजार की स्थिति में उतार-चढ़ाव के कारण रिटर्न में अस्थिरता।

म्यूचुअल फंड्स केचयन में रखे इन बातो का ख्याल

  1. आपके निवेश उद्देश्यों का निर्धारण:
    • लंबी अवधि की पूंजी वृद्धि, नियमित आय, या कर बचत, आपका मुख्य उद्देश्य क्या है?
  2. आपकी जोखिम सहनशीलता का आकलन:
    • क्या आप उच्च जोखिम उठाने के लिए तैयार हैं, या आप कम जोखिम के साथ स्थिर रिटर्न चाहते हैं?
  3. फंड का पिछले प्रदर्शन:
    • फंड का ऐतिहासिक प्रदर्शन देखिए, यह जानने के लिए कि यह बाजार के विभिन्न परिस्थितियों में कैसा प्रदर्शन करता है।
  4. फंड के खर्च अनुपात और प्रबंधन शुल्क:
    • फंड के द्वारा लगाए जाने वाले शुल्कों की समीक्षा करें, क्योंकि ये आपके कुल रिटर्न को प्रभावित कर सकते हैं।
  5. फंड मैनेजर का अनुभव और विशेषज्ञता:
    • फंड मैनेजर की पृष्ठभूमि और उनके प्रबंधन के तहत अन्य फंड्स के प्रदर्शन को देखें।

5. निष्कर्ष

म्यूचुअल फंड्स निवेशकों को एक आसान और प्रभावी तरीका प्रदान करते हैं ताकि वे अपने धन को बढ़ा सकें और विविधता ला सकें। सही फंड का चयन करने के लिए अपनी वित्तीय स्थिति, निवेश के उद्देश्य और जोखिम सहनशीलता को ध्यान में रखना जरूरी है।

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